प्राचीन भारत में राजनीतिक हिंसा
Price: 550.00 INR
ISBN:
9780199494088
Publication date:
02/04/2022
Paperback
640 pages
Price: 550.00 INR
ISBN:
9780199494088
Publication date:
02/04/2022
Paperback
640 pages
उपिंदर सिंह ; अनुवाद: आनंद स्वरूप वर्मा
Rights: World Rights
उपिंदर सिंह ; अनुवाद: आनंद स्वरूप वर्मा
Description
यह पुस्तक प्राचीन भारत के 1200 वर्षों (600 ई.पू.–600 ई.) को एक नए नजरिए से हमारे सामने प्रस्तुत करती है। व्यवस्थित और विस्तृत साक्ष्यों के जरिए यह और भी बड़े कालखंड का विवरण हमारे समक्ष पेश करती है। पुस्तक में प्राचीन भारत में हिंसा और अहिंसा के विमर्श और राज्यसत्ता एवं धर्मसत्ता के साथ हिंसा के अंतर्संबंधों को उजागर किया गया है। ऐसा करते हुए पुस्तक उन बनी-बनायी धारणाओं को चुनौती देती है जिनके तहत भारतीय समाज की विशिष्टता के एक अनिवार्य तत्व के रूप में अहिंसा को महिमामंडित किया जाता रहा है। पुस्तक, राजनीतिक हिंसा को एक समस्या लेकिन राज्यसत्ता के लिए एक ऐसी अनिवार्यता के रूप में देखती है, जिसके बगैर राज्य का अस्तित्व संभव नहीं है।
वैदिक साहित्य, संस्कृत साहित्य, रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र, नीतिसार एवं बौद्ध व जैन ग्रंथों और प्राचीन शिलालेखों के साक्ष्यों के ज़रिए यह पुस्तक प्राचीन भारत में राजनीतिक हिंसा की उपस्थिति और इसके औचित्य व अनौचित्य को लेकर चल रही बौद्धिक बहस को सामने लाती है। राज्यसत्ता के साथ हिंसा के अनिवार्य जुड़ाव और इसके समानांतर एक मूल्य के रूप में अहिंसा के आदर्श के उन अंतर्विरोधों की भी पहचान करती है जो हिंसा और अहिंसा को लेकर प्राचीन भारत की विभिन्न विचार-परम्पराओं का हिस्सा थे।
प्राचीन भारत में राजसत्ता और समाज को समझने के लिए यह एक तार्किक और अनिवार्य पुस्तक है।
उपिंदर सिंह भारत की जानीमानी इतिहासकार हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफ़ेसर रहीं। समाज विज्ञान में योगदान के लिए इन्हें इंफ़ोसिस पुरस्कार से नवाजा गया है।
आनंद स्वरूप वर्मा वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और अनुवादक हैं। हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका समकालीन तीसरी दुनिया के संस्थापक और संपादक रहे।
उपिंदर सिंह ; अनुवाद: आनंद स्वरूप वर्मा
उपिंदर सिंह ; अनुवाद: आनंद स्वरूप वर्मा
Description
यह पुस्तक प्राचीन भारत के 1200 वर्षों (600 ई.पू.–600 ई.) को एक नए नजरिए से हमारे सामने प्रस्तुत करती है। व्यवस्थित और विस्तृत साक्ष्यों के जरिए यह और भी बड़े कालखंड का विवरण हमारे समक्ष पेश करती है। पुस्तक में प्राचीन भारत में हिंसा और अहिंसा के विमर्श और राज्यसत्ता एवं धर्मसत्ता के साथ हिंसा के अंतर्संबंधों को उजागर किया गया है। ऐसा करते हुए पुस्तक उन बनी-बनायी धारणाओं को चुनौती देती है जिनके तहत भारतीय समाज की विशिष्टता के एक अनिवार्य तत्व के रूप में अहिंसा को महिमामंडित किया जाता रहा है। पुस्तक, राजनीतिक हिंसा को एक समस्या लेकिन राज्यसत्ता के लिए एक ऐसी अनिवार्यता के रूप में देखती है, जिसके बगैर राज्य का अस्तित्व संभव नहीं है।
वैदिक साहित्य, संस्कृत साहित्य, रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र, नीतिसार एवं बौद्ध व जैन ग्रंथों और प्राचीन शिलालेखों के साक्ष्यों के ज़रिए यह पुस्तक प्राचीन भारत में राजनीतिक हिंसा की उपस्थिति और इसके औचित्य व अनौचित्य को लेकर चल रही बौद्धिक बहस को सामने लाती है। राज्यसत्ता के साथ हिंसा के अनिवार्य जुड़ाव और इसके समानांतर एक मूल्य के रूप में अहिंसा के आदर्श के उन अंतर्विरोधों की भी पहचान करती है जो हिंसा और अहिंसा को लेकर प्राचीन भारत की विभिन्न विचार-परम्पराओं का हिस्सा थे।
प्राचीन भारत में राजसत्ता और समाज को समझने के लिए यह एक तार्किक और अनिवार्य पुस्तक है।
उपिंदर सिंह भारत की जानीमानी इतिहासकार हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफ़ेसर रहीं। समाज विज्ञान में योगदान के लिए इन्हें इंफ़ोसिस पुरस्कार से नवाजा गया है।
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