Yeh Darakti Zameen (यह दरकती जमीन)

Bharat ka Paristhitik Itihas (भारत का पारिस्थितिक इतिहास)

Price: 375.00 INR

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Disclaimer :You will be redirected to a third party website.The sole responsibility of supplies, condition of the product, availability of stock, date of delivery, mode of payment will be as promised by the said third party only. Prices and specifications may vary from the OUP India site.

ISBN:

9780199485208

Publication date:

22/01/2018

Paperback

288 pages

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9780199485208

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22/01/2018

Paperback

288 pages

Madhav Gadgil (माधव गाडगिल) and Ramachandra Guha (रामचंद्र गुहा)

Rights:  World Rights

Madhav Gadgil (माधव गाडगिल) and Ramachandra Guha (रामचंद्र गुहा)

Description

यह पुस्तक सबसे पहले 1992 में प्रकाशित हुई थी। यह भारतीय उपमहाद्वीप का व्याख्यात्मक पारिस्थितिक इतिहास प्रस्तुत करती है। यह पारिस्थितिक विवेक और अपव्यय का एक सिद्धांत प्रस्तुत करती है और दक्षिण एशिया के व्यापक इतिहास पर इस सिद्धांत को लागू करती है। यह पुस्तक विशेष रूप से वन संसाधनों के उपयोग और दुरुपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है। भाग-1 में लेखकों ने पारिस्थितिक इतिहास का भारत का सामान्य सिद्धांत प्रस्तुत किया है। भाग-2 में पूर्व-आधुनिक भारत का एक नवीन व्याख्यात्मक इतिहास और जाति व्यवस्था की एक पारिस्थितिक व्याख्या पेश की गई है। पुस्तक के तीसरे भाग-3 में लेखकों ने भारत में अंग्रेजों द्वारा आरंभ किये गये संसाधन-उपयोग की प्रणाली का सामाजिक-पारिस्थितिक विश्लेषण किया है। इस संदर्भ में उन्होंने व्यापक अनुसंधान-सामग्री को अपने स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया है। यह पुस्तक भारत के पारिस्थितिक इतिहास से जुड़े विविध पहलुओं को समझने के लिए अनिवार्य है। यह वर्तमान पर्यावरणीय द्वंद्वों के विश्वलेषण के लिए आवश्यक ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती है।

About the Authors
माधव गाडगीळ
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस, बैंगलोर में इकोलॉजिकल साइंसेज बिभाग में प्रोफेसर रहे हैं।
रामचंद्र गुहा भारत के जाने-मने इतिहासकार हैं।

Madhav Gadgil (माधव गाडगिल) and Ramachandra Guha (रामचंद्र गुहा)

Madhav Gadgil (माधव गाडगिल) and Ramachandra Guha (रामचंद्र गुहा)

Madhav Gadgil (माधव गाडगिल) and Ramachandra Guha (रामचंद्र गुहा)

Madhav Gadgil (माधव गाडगिल) and Ramachandra Guha (रामचंद्र गुहा)

Description

यह पुस्तक सबसे पहले 1992 में प्रकाशित हुई थी। यह भारतीय उपमहाद्वीप का व्याख्यात्मक पारिस्थितिक इतिहास प्रस्तुत करती है। यह पारिस्थितिक विवेक और अपव्यय का एक सिद्धांत प्रस्तुत करती है और दक्षिण एशिया के व्यापक इतिहास पर इस सिद्धांत को लागू करती है। यह पुस्तक विशेष रूप से वन संसाधनों के उपयोग और दुरुपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है। भाग-1 में लेखकों ने पारिस्थितिक इतिहास का भारत का सामान्य सिद्धांत प्रस्तुत किया है। भाग-2 में पूर्व-आधुनिक भारत का एक नवीन व्याख्यात्मक इतिहास और जाति व्यवस्था की एक पारिस्थितिक व्याख्या पेश की गई है। पुस्तक के तीसरे भाग-3 में लेखकों ने भारत में अंग्रेजों द्वारा आरंभ किये गये संसाधन-उपयोग की प्रणाली का सामाजिक-पारिस्थितिक विश्लेषण किया है। इस संदर्भ में उन्होंने व्यापक अनुसंधान-सामग्री को अपने स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया है। यह पुस्तक भारत के पारिस्थितिक इतिहास से जुड़े विविध पहलुओं को समझने के लिए अनिवार्य है। यह वर्तमान पर्यावरणीय द्वंद्वों के विश्वलेषण के लिए आवश्यक ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती है।

About the Authors
माधव गाडगीळ
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस, बैंगलोर में इकोलॉजिकल साइंसेज बिभाग में प्रोफेसर रहे हैं।
रामचंद्र गुहा भारत के जाने-मने इतिहासकार हैं।

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