लोकतंत्र और उसकी संस्थाएँ

Price: 595.00 INR

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ISBN:

9780190131470

Publication date:

04/02/2022

Paperback

192 pages

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9780190131470

Publication date:

04/02/2022

Paperback

192 pages

आंद्रे बेते ; गौतम चौबे

Rights:  Indian Territory Rights (No Agent)

आंद्रे बेते ; गौतम चौबे

Description

यह पुस्तक, लोकतांत्रिक संस्थाओं के इतिहास के जरिए भारत में लोकतंत्र के इतिहास को प्रस्तुत करती है। एक सफल लोकतंत्र को संचालित करने के लिए संख्या बल और कानून के बीच किस तरह का संतुलन जरूरी है इसको दर्शाती है। ऐसे नाजुक संतुलन को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थाओं की भूमिका को यह पुस्तक हमारे समक्ष रखती है। पुस्तक में संसद, न्यायपालिका, राजनीतिक दल और विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं की महत्व, विसंगति, और आंतरिक द्वंद का विश्लेषण किया गया है l यह हमें विपक्ष की भूमिका, संवैधानिक नैतिकता, और नागरिकों के लोकतांत्रिक कर्तव्यों और उनके मूलभूत अधिकारों से रूबरू कराती है।

लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत करते हुए लेखक ने भारतीय गणतंत्र के सफरनामे के ऐतिहासिक, वैश्विक और दार्शनिक पक्ष को भी रेखांकित किया है। पुस्तक उन सामाजिक अवशेषों और समकालीन कारकों की चर्चा करती है जिनके कारण हमारा लोकतंत्र संवैधानिक मान्यताओं से जनवाद और लोकलुभावन मुद्दों की तरफ मुड़ा। पुस्तक बताती है कि राजनीतिक बदलाव और नैतिक पतन के बीच संस्थाएं ही लोकतंत्र की ढाल हैं।

लोकतंत्र, राजनीति और संस्थाओं में रुचि रखने वालों के लिए यह पुस्तक एक जरूरी पाठ है।   

आंद्रे बेते एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे। शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए 2005 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

गौतम चौबे साहित्य आलोचक, अनुवादक और लेखक। दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी साहित्य के प्राध्यापक हैं।

आंद्रे बेते ; गौतम चौबे

Table of contents

भूमिका 
1. लोकतंत्र की संस्थाएँ 7
2. सरकार और वि पक्ष 27
3. सिवि नसनवल सोसाइटी और राज्य 46
4. संवैधानिक नैति कता 62
5. क्या अधि कारों से विश्वा स का अवमूल्य न होता है? 81
6. जाति और नागरिकता 100
7. बहुलवाद और उदारवाद 115
8. क़ा नून और प्रथा 133
9. समाजशास् त्र और वि चारधारा 151
अनुक्रम 167
परिचय 173

आंद्रे बेते ; गौतम चौबे

आंद्रे बेते ; गौतम चौबे

आंद्रे बेते ; गौतम चौबे

Description

यह पुस्तक, लोकतांत्रिक संस्थाओं के इतिहास के जरिए भारत में लोकतंत्र के इतिहास को प्रस्तुत करती है। एक सफल लोकतंत्र को संचालित करने के लिए संख्या बल और कानून के बीच किस तरह का संतुलन जरूरी है इसको दर्शाती है। ऐसे नाजुक संतुलन को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थाओं की भूमिका को यह पुस्तक हमारे समक्ष रखती है। पुस्तक में संसद, न्यायपालिका, राजनीतिक दल और विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं की महत्व, विसंगति, और आंतरिक द्वंद का विश्लेषण किया गया है l यह हमें विपक्ष की भूमिका, संवैधानिक नैतिकता, और नागरिकों के लोकतांत्रिक कर्तव्यों और उनके मूलभूत अधिकारों से रूबरू कराती है।

लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत करते हुए लेखक ने भारतीय गणतंत्र के सफरनामे के ऐतिहासिक, वैश्विक और दार्शनिक पक्ष को भी रेखांकित किया है। पुस्तक उन सामाजिक अवशेषों और समकालीन कारकों की चर्चा करती है जिनके कारण हमारा लोकतंत्र संवैधानिक मान्यताओं से जनवाद और लोकलुभावन मुद्दों की तरफ मुड़ा। पुस्तक बताती है कि राजनीतिक बदलाव और नैतिक पतन के बीच संस्थाएं ही लोकतंत्र की ढाल हैं।

लोकतंत्र, राजनीति और संस्थाओं में रुचि रखने वालों के लिए यह पुस्तक एक जरूरी पाठ है।   

आंद्रे बेते एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे। शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए 2005 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

गौतम चौबे साहित्य आलोचक, अनुवादक और लेखक। दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी साहित्य के प्राध्यापक हैं।

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Table of contents

भूमिका 
1. लोकतंत्र की संस्थाएँ 7
2. सरकार और वि पक्ष 27
3. सिवि नसनवल सोसाइटी और राज्य 46
4. संवैधानिक नैति कता 62
5. क्या अधि कारों से विश्वा स का अवमूल्य न होता है? 81
6. जाति और नागरिकता 100
7. बहुलवाद और उदारवाद 115
8. क़ा नून और प्रथा 133
9. समाजशास् त्र और वि चारधारा 151
अनुक्रम 167
परिचय 173

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